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भारत में बढ़ती महंगाई और कम आमदनी के कारण कई लोग अपना इलाज करवाने में असमर्थ हैं. किसी साधारण व्यक्ति के लिए भी आजकल अपने इलाज का खर्चा उठा पाना काफी मुश्किल हो जाता है और इसकी वजह है दुकानों में मिलने वाली महंगी दवाई. कई लोग तो महंगी दवाइयों के खर्चे से इतना डर जाते हैं कि अपना इलाज तक नहीं करवाते हैं. वहीं लोगों की इस परेशानी को समझते हुए सरकार ने उनके लिए एक नई योजना चलाई है. सरकार द्वारा चलाई गई इस योजना के तहत अब कोई भी व्यक्ति बिना महंगी दवाई के खर्चे के डर से अपना इलाज आसानी से करवा सकता है. आखिर क्या है ये योजना और इस योजना से जुडी महत्वपूर्ण जानकारी को हमारे इस लेख में बताया गया है.
प्रधानमंत्री जन औषधि योजना भारत सरकार के द्वारा उन लोगों के लिए शुरू की गई है जो कि ज्यादा महंगी दवाइयों का बोझ उठाने में असमर्थ हैं. इस योजना की घोषणा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 1 जुलाई 2015 को गई थी. इस योजना से ना सिर्फ गरीब बल्कि मध्यमवर्ग के परिवारों के लोगों को भी काफी मदद मिलेगी. इस योजना के मुताबिक लोगों को सस्ती दवाईयां दी जाएगी. ये दवाईयां आप सरकार द्वारा खोले गए किसी भी ‘जन औषधि केंद्र’ से आसानी से ले सकते हैं. इस योजना के तहत सरकार जन औषधि केंद्र बनाएगी, जहां जेनेरिक दवाईयां आम जनता को बेची जाएंगी.
जेनेरिक दवाई और ब्रांड वाली दवाइयों में कोई भी अंतर नहीं होता है. ये दोनों दवाई एक जैसी होती हैं, बस फर्क इनके दामों में होता है. उदाहरण के तौर पर मान लीजिए आप किसी अच्छे ब्रांड की कोई दवाई लेते हैं, तो वो आपको जहां 100 रूपए की मिलेगी. वहीं जेनेरिक दवाई आपको 50 रूपए तक मिल जाएगी. यानी काम दोनों दवाइयों का एक जैसे होगा बस दामों में अंतर होगा. वहीं बहुत से लोग चिंतित हो जाते हैं कि जेनेरिक दवाएं सस्ते उत्पादों से बनाई गई होगी. मगर ऐसा कुछ भी नहीं होता है. इन दवाइयों की गुणवत्ता और प्रभावशीलता से कोई भी समझौता नहीं किया जाता है. वहीं अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने भी जेनेरिक दवाओं को सुरक्षित माना है और कहा है कि ये दवाई भी ब्रांड नाम वाली दवाओं की तरह प्रभावशाली होती हैं. कोई भी इन दवाइयों को बिना किसी चिंता के ले सकता है.
दरअसल, जेनेरिक दवाएं इसलिए सस्ती होती हैं, क्योंकि इसके निर्माता इन दवाइयों या फिर अपनी कंपनी के विकास और अपने प्रचार प्रसार पर ज्यादा खर्चों नहीं करते हैं. जबकि कोई भी ब्रांड वाली कंपनी बाजार में अपने प्रचार पर अधिक खर्चा करती है, जिससे इनकी दवाइयों के दाम भी ज्यादा होते हैं. इसके अलावा इन दवाईयों का कितना दाम रखा जाए इसका फैसला लेने में सरकार की अहम भूमिका होती है. इसलिए कोई चाहकर भी इन दवाइयों के दाम नहीं बढ़ा सकता है.
अक्सर डॉक्टर पैसे कमाने के चक्कर में मरीजों को ब्रांड वाली दवाई लेने को कहते हैं, ऐसा करने से उनको उस दवाई की कंपनी की ओर से अच्छे खासे पैसे मिलते हैं. वहीं अगर आप जेनेरिक दवाई लेते हैं तो आपको ये दवाई ब्रांड वाली दवाई से 60 से 70 फीसदी तक कम कीमत पर मिल जाएगी.
फार्मास्युटिकल्स विभाग ने एक स्पेशल विभाग बनाया हैं जिसे ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयू ऑफ इंडिया (बीपीपीआई) के नाम से जाना जाता है. यह सभी जन औषधि अभियान की देख रेख करती हैं. साथ ही जनता को इसके प्रति जागरूक करती हैं इसके फायदे, नुकसान बताती हैं और समय पर दवायें उपलब्ध कराती हैं. साथ ही जन औषधि शॉप के लिए उचित उम्मीदवारों को तैयार कर उन्हें इस जेनेरिक दवाओं की पूरी जानकारी देती हैं. बीपीपीआई पुरे देश में जन औषधि का प्रचार प्रसार कर मार्केटिंग भी करती हैं.
ब्यूरो ऑफ फार्मा पीएसयू ऑफ इंडिया (बीपीपीआई) की स्थापना 2008 में भारत सरकार द्वारा की गई थी. बीपीपीआई डिपार्टमेंट ऑफ फार्मास्युटिकल्स के अंतर्गत कार्य करता है. वहीं बीपीपीआई के कार्यों के बारे में नीचे जानकारी दी गई है, जो कि इस प्रकार है-
अगर अपने बी फार्मा और डी फार्मा की पढ़ाई कर रखी है, तो आप ये केंद्र खोलने के लिए आवेदन कर सकते हैं. इसके अलावा कोई भी चेरिटेबल ट्रस्ट या फिर एनजीओ भी इसके लिए आवेदन कर सकते हैं. बस उनको किसी बी फार्मा और डी फार्मा डिग्रीधारी व्यक्ति को इस केंद्र की जिम्मेदार देनी होगी.
अगर आप जन औषधि केंद्र खोलने का सोच रहे हैं, तो आपके पास कम से कम 120 वर्ग फीट की एक दुकान होनी चाहिए. इतना ही नहीं उद्यमियों, फार्मासिस्ट और डॉक्टर में से कोई भी अस्पताल के परिसर के बाहर या किसी अन्य उपयुक्त जगह पर जन औषधि केंद्र खोल सकता है. जन औषधि केंद्र को देश के हर शहर में खोलने के लिए इस योजना का खूब प्रचार भी किया जा रहा है. बीपीपीआई द्वारा कोशिशें की जा रही है कि इन स्टोरों को रेलवे, बस, सरकारी दफ्तर के पास वाली जगह पर भी खोला जाए. इसके लिए बीपीपीआई, राज्य सरकार से बात कर रही है कि वो इन जगहों पर स्टोर खोलने के लिए स्थान मुहैया करवाएं.